सुलयमान पहाड़ (किरगिज़: Сулайман Тоо, सुलईमान तू; अंग्रेज़ी: Sulaymaan Mountain), जिसे तख़्त-ए-सुलयमान और सुलयमान चट्टान भी कहते हैं, किर्गिज़स्तान के ओश शहर के पास स्थित एक पहाड़ है। यह मध्य एशिया की मशहूर फ़रग़ना वादी के मैदानी इलाक़े में दूर तक इकलौता पहाड़ होने से और भी महान दिखता है। हज़ारों साल से यह पहाड़ पूज्य रहा है और आज यह एक मान्य विश्व धरोहर स्थल है।
यहाँ कुछ प्राचीन चिह्न मिलें हैं जिनसे अंदेशा होता है कि यह स्थाने 'चुस्त संस्कृति' (Chust culture) का एक महत्वपूर्ण केंद्र था और उनके ज़रथुष्ट्र-पूर्व धर्म में एक धार्मिक स्थल था। सम्भव है कि वे लोग स्वयं पहाड़ की ही पूजा करते हों। इस क्षेत्र में इस्लाम के आने के बाद, इस पहाड़ के साथ एक नया विशवास यह जुड़ गया के यहाँ उन सुलयमान की क़ब्र है जिनका क़ुरान में एक न्यायप्रीय राजा और मसीहा के रूप में वर्णन है। आधुनिक काल में यह मान्यता है कि अगर कोई स्त्री पहाड़ कर बनी मस्जिद तक चढ़े और वहाँ की पवित्र शिला में बने छेद से घुटनों पर चलकर निकले तो वह स्वस्थ बच्चे की माँ बनेगी। इस पहाड़ पर बहुत से वृक्ष-झाड़ियों पर लोग मन्नत मांगकर रुमाल-दुपट्टे बाँध देते हैं, जैसा की भारतीय उपमहाद्वीप में भी मंदिरों-मस्जिदों के पास देखा जाता है। सुलयमान पर्वत पर सोवियत संघ के ज़माने में बना एक संग्रहालय भी है और इसकी निचली ढलानों पर एक क़ब्रिस्तान है।
यहाँ भारत के प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर ने सन् १५१० में एक छोटी सी मस्जिद बनवा दी थी। बाबर फ़रग़ना वादी का एक उज़बेक निवासी था और कहा जाता है कि एक दफ़ा उसने यहाँ बैठकर अपने भविष्य का चिंतन किया और फ़ैसला किया की उसकी आकांक्षाएँ फ़रग़ना के छोटे इलाक़े में पूरी नहीं हो सकतीं और उसे भारत की ओर कूच करना चाहिए।