250px राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली, पूर्व : वाइसरॉय हाउस |
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राष्ट्रपति भवन is located in दिल्ली
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Shown within दिल्ली
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इमारत | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
स्थापत्य शैली | परंपरागत भारतीय शैली, बिना मोटिफ | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
शहर | दिल्ली | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
देश | भारत | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
क्लाइंट | भारत सरकार | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
निर्देशांक | निर्देशांक: </td></tr> | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
निर्माण | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
आरम्भ | 1912</td></tr> | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पूर्ण | 1929</td></tr> | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
कीमत | रुपये</td></tr> | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
निर्माणकर्ता समूह | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
वास्तुकार | एड्विन लैंडसियर
लूट्यन्स</td></tr>
</table> राष्ट्रपति भवन भारत सरकार के राष्ट्रपति का सरकारी आवास है। सन १९५० तक इसे वाइसरॉय हाउस बोला जाता था। तब यह तत्कालीन भारत के गवर्नर जनरल का आवास हुआ करता था। यह नई दिल्ली के हृदय क्षेत्र में स्थित है। अभिकल्पनाराष्ट्रपति भवन इमारत समूह का खाका इमारत में ढेरों गोलाकार परात/कुण्ड रूपी घेरे हैं, जो कि भवन के ऊपर लगे हैं, और जिनमें पानी के फौव्वारे भी लगे हैं, वे भारतीय स्थापत्य के अभिन्न अंग हैं। दिल्ली दरबार के वर्ष १९११ में भारत की राजधानी को तत्कालीन कलकत्ता से स्थानांतरित कर दिल्ली लाने का निर्णय लिया गया। यह निर्णय १२ दिसंबर को जॉर्ज पंचम द्वारा घोषित किया गया। इस योजना के तहत गवर्नर जनरल के आवास को प्रधान और अतीव विशेष दर्जा दिया गया। ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स को, जो कि नगर योजना के प्रमुख सदस्य थे, इस इमारत स्थल की अभिकल्पना का कार्यभार सौंपा गया। इसके मूल योजना के अनुसार, कुछ ऐसा बनाना था, जो कि पूर्वीय और पाश्चात्य शैली का मिश्रण हो। कुछ लोगों की राय में यह महल परंपरागत शैली का होना चाहिये था, जो कि प्राचीन यूनानी शैली में होता। लेकिन यह भारत में स्पष्टतः पाश्चात्य शक्ति प्रदर्शन होता, जो कि अमान्य था। वहीं दूसरी ओर कई लोगों का मत था, कि यह पूर्णातया भारतीय शैली का हो। इन दोनों के मिश्रण के कई अनुपात भी प्रस्तावित थे। तब वाइसरॉय ने कहा, कि महल परंपरागत होगा, परंतु भारतीय मोटिफ के बिना। यही वह अभिकल्पना थी, जो कि मूर्त रूप में आज खड़ी है। यह महल लगभग उसी रूप में बना, जो कि लूट्यन्स ने बेकर को शिमला से १४ जून १९१२ को भेजा था। लूट्यन्स की अभिकल्पना वृहत रूप से परंपरागत थी, जो कि भारतीय वास्तुकला से वर्णमेल, ब्यौरे, इत्यादि में अत्यधिक प्रेरित थी, साथ ही वाइसरॉय के आदेश के अनुसार भी थी। लूट्यन्स और बेकर, जिन्हें वाइसरॉय हाउस और सचिवालयों का कार्य सौंपा गया, उन्होंने आरम्भ में काफी सौहार्द से कार्य किया, लेकिन बाद में झगड़े भी। बेकर को इस भवन के आगे बने दो सचिवालयों की योजना का कार्य दिया गया था। आरम्भिक योजनानुसार वाइसरॉय हाउस को रायसिना की पहाड़ी के ऊपर बना कर दोनों सचिवालय नीचे बनाने थे। बाद में सचिवालयों को ४०० गज पीछे खिसकाकर पहाड़ी पर ही बनाना तय हुआ। लूट्यन्स की योजनानुसार यह भवन अकेला ऊंचाई पर स्थित होता, जिसे कि सचिवालयों के कारण अपने मूलयोजना से पीछे सरकना पड़ा, साथ ही आगे दोनों सचिवालय खाड़े हो गये, जिससे कि वह दृष्टि में कूछ दब गया। यही उनके विवाद का कारण था। इस महल के पूर्ण होने पर लूट्यन्स ने बेकर से अच्छी लड़ाई की, क्योंकि यकीनन वाइसरॉय हाउस का दृश्य, सड़क के उच्च कोण के कारण बाधित हो गया था। रात्रि में राष्ट्रपति भवन का दृष्य भवन के सामने सजी तोपें लूट्यन्स ने इस विवाद को बेकरलू (वाटरलू के युद्ध के सन्दर्भ में) के स्तर का माना। लेकिन भरपूर प्रयास के बावजूद इसे बदलवा नहीं पाया। वह चाहता था, कि भवन से नीचे तक एक लम्बी ढ़ाल पर सड़क आये, जिससे कि भवन का दृश्य ना बाधित हो, एवं दूर से भी दृश्य हो। सन १९१४ में बेकर और लूट्यन्स सहित बनी एक समिति मं तय हुआ, कि सड़क की ढ़ाल २५ में १ हो, जो बाद में केवल २२ में १ बनी। इससे अधिक खड़ी ढ़ाल भवन के दॄश्य को और बाधित करती। लूट्यन्स यह जानता था, कि यह ढ़ाल भी इसके दृश्य को पूर्णतया नहीं दिखा पायेगी।तब उसने इसे कम कराने का निवेदन किया। सन १९१६ में इम्पीरियल दिल्ली समिति ने लूट्यन्स के इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया। लूट्यन्स ने तब भी यही समझा कि बेकर सरकार को खुश करके, और पैसे बनाने में अधिक लगा था, ना कि अच्छी श्रेणी की वास्तु रूपांकन में ध्यान केद्रित करने में। लूट्यन्स ने भारत और इंगलैंड की बाइस वर्षों में लगभग प्रतिवर्ष यात्रा की, दोनों स्थानों की वाइसरॉय इमारत बनाने हेतु। उसे लॉर्ड हार्डिंग के बजट नियंत्रण के कारण इमारत के आकार को कई गुणा छोटा भी करना पड़ा। लॉर्ड हार्डिंग ने यद्यपि खर्चे नियंत्रित कर कीमत घटाने के निर्देश दिये थे. तथापि वह चाहते थे, कि कूछ निश्चित मात्रा में तो इमारत में वैभव दर्शन हों ही। भारतीय रूपांकनछज्जेदार भवन का एक दृश्य। इमारत के ऊपर सहायक गुम्बदनुमा ढांचा छतरी कहलाता है, जो कि भारतीय स्थापत्यकला का एक अभिन्न अंग है। इस चित्र में बेकर द्वारा अभिकल्पित सचिवालयों में से एक दृश्य है, जो कि भवन का अंग नहीं है। इमारत में विभिन्न भारतीय डिज़ाइन डाले और जोड़े गये। इनमें ढेरों गोलाकार परात/कुण्ड रूपी घेरे हैं, जो कि भवन के ऊपर लगे हैं, और जिनमें पानी के फौव्वारे भी लगे हैं, वे भारतीय स्थापत्य के अभिन्न अंग हैं। यहां परंपरागत बारतीय छज्जे भी हैं, जो कि आठ फीट दीवार से बाहर को निकले हुए हैं, और नीचे पुष्पाकृति से सम्पन्न हैं। ये भवन को सीधी धूप के खिड़कियों में पड़ने से, और मानसून में वर्षा के जल और फुहार को जाने से रोकते हैं। छत के ऊपर बनीं कई छतरियां, बवन की छत के उस भाग को, जहां मुख्य गुम्बद नहीं बना है, वहां के सपाट दृश्य होने से रोकतीं हैं। लूट्यन्स ने कई भारतीय शैली के नमूनों को उपयुक्त स्थानों पर प्रयुक्त किया है, जो कि काफी प्रभावशाली हैं। इनमें से कुछ हैं, बाग में बने नाग, स्तंभों पर बने सजे धजे हाथी, और छोटे खम्भों पर लगे हुए बैठे हुए सिंह। ब्रिटिष शिल्पकार चार्ल्स सार्जियेन्ट जैगर, जो कि अपने बनाये कई युद्ध स्मारकों के लिये जाने जाते हैं, ने बाहरी दीवारों पर बने हाथियों की सजावट की थी। इसके साथ ही जयपुर स्तंभ के निकट का पूर्ण बास रिलीफ भी उन्हीं ने बनवाया था। . भवन का अलंकृत छज्जा लाल बलुआ पत्थर से बनी जालियां भी भारतीय स्थापत्य से प्रेरित थीं। भवन के आगे की ओर, पूर्वी ओर, बारह असमान स्थित स्तंभ हैं, जिनपर ऊपर की ओर, खड़ी रेखाओं का बॉर्डर है, और अकैन्थस की पत्तियों सहित बेक बनी है, जिसके संग चार पैन्डेन्ट रूप में घंटी बनी है, जो कि भारतीय हिन्दू धर्म के मंदिरों का एक अनिवार्य अंग हैं। प्रत्येक स्तंभ के प्रत्येक ऊपरी कोण पर एक घंटी बनी है। यह कथित था, कि क्योंकि ये घंटियां शांत हैं, इसलिये भारत में ब्रिटिश राज्य समाप्त नहीं होगा। प्रासाद के सामने की ओर कोई खिड़की नहीं है, सिवाय किनारों की ओर बनी हुई वाली के। लूट्यन्स ने भवन में कुछ व्यक्तिगत प्रभाव भी डाले हैं, जैसे कि उद्यान की दीवार में एक स्थान, और स्टेट कक्ष में दो रोशनदान, जो कि चश्में जैसे प्रतीत होते हैं। यह भवन मुख्यतः १९२९ में, बाकी नई दिल्ली के साथ ही, पूर्ण हो गया था, और इसका आधिकारिक उद्घाटन सन १९३१ में हुआ था। यह एक रोचक तथ्य है, कि यह भवन सत्रह वर्शःओं में पूर्ण हुआ, और सत्रह वर्ष ही ब्रिटिश राज्य में रह पाया,। अपने निर्माण पूर्ण होने के अठ्ठारहवें वर्ष ही, यह स्वतंत्र भारत में आ गया। १९४७ में, भारतीय स्वतंत्रता के बाद, तत्कालीन वाइसरॉय वहां रहते रहे, और अंततः १९५० में भारतीय गणतंत्रता के बाद से यहां भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति रहने लगे, और इसका नाम बदल कर राष्ट्रपति भवन हो गया। इसका गुम्बद, लूट्यन्स के अनुसार रोमन पैन्थेयन से प्रेरित बताया गया था। वैसे यह मूलतः मौर्य काल में बने सांची स्तूप, सांची, मध्य प्रदेश से व्युत्पन्न है। यहां यूरोपियाई और मुगल स्थापत्यकला के घटक भी हैं। सम्पूर्णतः यह भवन अन्य ब्रिटिश इमारतों से एकदम भिन्न है। इसमें ३५५ सुसज्जित कक्ष हैं। इसका भूक्षेत्र फल २,००,००० वर्ग फीट (१९००० वर्ग मीटर) है। इस भवन में ७०० मिलियन ईंटें अओर ३.५ मिलियन घन फीट (८५००० घन मीटर) पत्थर लगा है, जिसके साथ लोहे का न्यूनतम प्रयोग हुआ है। खाकाभवन की बायीं ओर। भवन की दांयीं ओर। प्रासाद का खाका, एक वृहत वर्ग से बनाया गया है। यद्यपि यहां अनेकों आंगन और अंदरूनी खुले क्षेत्र हैं। यहां वाइसरॉय के लिये पृथक स्कंध है, और अभ्यागतों के लिये पृथक स्कंध है। वाइसरॉय स्कंध अपने आप में, एक अलग चार मंजिला मकान है, जिसमें अपने स्वयं के आंगन हैं। यह इतना बड़ा है, कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद ने यहां ना रहकर, पाहुना स्कंध में रहना पसंद किया। यही परंपरा उनके उत्तराधिकारियों द्वारा भी अनुगमित हुई। प्रासाद के मुख्य भाग के केन्द्र में, मुख्य गुम्बद के ठीक नीचे है – दरबार हॉल, जिसे ब्रिटिश काल में राजगद्दी कक्ष कहा जाता था। तब यहां वाइसरॉय और उनकी पत्नी के लिये राजगद्दियां होती थीं। इस कक्ष का अंतस अनलंकृत है, जो कि यहां के पाषाण नक्काशी को, बजाय पेचीदा सजावट के, उजागर करने हेतु किया गया है। ऐसे ही अधिकांश कक्षों में किया गया है। यहां के स्तंभ भी बाहर के मुख्य स्तंभों की भांति ही, ऊपर घंटी और खड़ी रेखाओं वाले बॉर्डर सहित हैं। दीवारों के ऊपर यही बॉर्डर भी हैं। कक्ष के बीच में एक दो टन भार का झाड़-फानूस (शैन्डेलियर) लगा है, जो कि ३३ मीटर ऊंची छत से लटकता है। इस विशाल कक्ष के चारों कोणों पर स्थित है एक कक्ष प्रति कोण। इनमें से दो स्टेट ड्रॉविंग कक्ष हैं, एक स्टेट अपर कक्ष और एक स्टेट पुस्तकालय हैं। अन्य कक्ष गलियारे जैसे भी हैं, जो कि एक ओरखुले हैं। ये नीचे आंगन में खुलते हैं। एक वृहत भोजन कक्ष , बैठक कक्ष, बिलियर्ड्स कक्ष और एक बड़ा बॉल कक्ष और कई जीने हैं। प्रासाद में सर्वत्र कई स्थानों पर जल के फव्वारे और बेसिन बने हैं, जिनमें से कुछ वाइसरॉय के आसन की सीध्इयों के पास भी हैं। इनमें आठ संगमर्मर के शेर छः जल बेसिनों में पानी डालते हुए बने हैं। यह सिंह ब्रिटेन के सूचक थे। इनमें से एक कक्ष की खुली छत भी है, जो कि प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक प्रकाश देती है। गुम्बदमुख्य इमारत मध्यवर्ती गुम्बद भारतीय और ब्रिटिष शैलियों का सम्मिश्रण है। केन्द्र में एक ऊंचा ताम्र गुम्बद है, जो कि एक समग्र इमारत से अलग दिखाई देता है, और एक ऊंचे ढ़ोलाकार या बेलनाकार ढांचे के ऊपर स्थित है। भवन के चारों कोनों के बीच कर्णरेखाओं के मध्य में यह गुम्बद स्थित है। यह पूरे भवन की ऊंचाई की दुगुनी ऊंचाई का है। सन १९१३ के भवन की योजना में जो इसकी ऊंचाई थी, उसे लॉर्ड हार्डिंग द्वारा बढ़ाया गया था। इस गुम्बद में परंपरागत और भारतीय शैलियों का मिश्रण है। लूट्यन्स के अनुसार, यह रूप रोम के पैन्थियन से उभरा है, लेकिन यह भी बहुत सम्भव है, कि इसको सांची स्तूप की प्रेरणा पर बनाया गया हो। इस गुम्बद घेरे हुए एक द्वार मण्डप (पोर्च) बना हुआ है, जिसमें समान स्थित स्तंभ हैं, जो कि गुम्बद को उठाए हुए हैं, और इन स्तंभों के बीछ खाली स्थान है। यह गुम्बद के हरेक ओर, सभी दिशाओं में हैं। इस के कारण ही, यह गुम्बद किसी भी कोण से देखने पर, यदि गर्मी के धुंधले मौसम में देखें, तो तैरता हुआ प्रतीत होता है। बाहरी गुम्बद की रेनफोर्स्ड कांक्रीट सीमेंट निर्मित गुम्बद, सन १९२९ के लगभग अपना आकार लेने लगा था। इस गुम्बद का अंतिम पाषाण ६ अप्रैल १९२९ को लगाया गया था। यद्यपि इसके ऊपर ताम्र आवरण सन १९३० तक नहीं लगा था। जयपुर स्तंभजयपुर स्तंभ के दक्षिण में भवन के सामने ही [[जयपुर स्तंभ खड़ा है, जिसके शिखर पर तत्कालीन जयपुर के महाराजा द्वारा भारत सरकार को शुभकामना स्वरूप भेजा हुआ कमल पर सितारा लगा है।]]भवन के ठीक सामने से एक मार्ग नारंगी बदरपुर बजरी से ढंका हुआ सीधा
लोहे के मुख्य द्वार रूपी फाटक तक जाता है, जो कि उस फाटक से होता
हुआ, दोनो सचिवालयों, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक के बीच से हो कर लाल
दीवारों के बीच से नीचे उतरता है, और विजय चौक से होता हुआ, राजपथ
कहलाता है। यह मार्ग इंडिया गेट तक जाता है। इस रास्ते के भवन से फाटक
की दूरी के ठीक बीचो बीच खडआ है एक पत्थर का गुलाबी और लाल स्तंभ, जो
काफी ऊंचा है, और उसपर जयपुर के तत्कालीन महाराजा द्वारा भेजा गया एक
चांदी का शुबकामना प्रतीक इसपर ऊपर लगा है| इस कारण इसे जयपुर स्तंब
कहा जाता है| इस स्तंब के उत्तर और दक्षिण ओर्, नीचे सीढियां उतरकर दो
सड्क्षकें लगभग २०० मीटर तक जातीं हैं, और बाहरी वघेरे के पाटकों
संख्या ३७ और ३५ में जा मिलतीं हैं| मुगल उद्यान
15px मुख्य लेख: मुगल उद्यान, दिल्ली
मुगल उद्यान का एक दृश्य राष्ट्रपति भवन के पिछवाड़े मुगल गार्डन अपने किस्म का अकेला ऐसा उद्यान है, जहां विश्वभर के रंग-बिरंगे फूलों की छटा देखने को मिलती है। मैसूर के वृन्दावन गार्डन को छोड़कर शायद ही और कोई उद्यान इसके मुकाबले का होगा। यहां विविध प्रकार के फूलों की गजब की बहार है। अकेले गुलाब की ही 250 से भी अधिक किस्में हैं।मुगल गार्डन की परिकल्पना लेडी हार्डिंग की थी। उन्होंने श्रीनगर में निशात और शालीमार बाग देखे थे, जो उन्हें बहुत भाये। बस तभी से मुगल गार्डन उनके जेहन में बैठ गया था।भारत के अब तक जितने भी राष्ट्रपति इस भवन में निवास करते आए हैं, उनके मुताबिक इसमें कुछ न कुछ बदलाव जरूर हुए हैं। प्रथम राष्ट्रपति, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद ने इस गार्डन में कोई बदलाव नहीं कराया लेकिन उन्होंने इस खास बाग को जनता के लिए खोलने की बात की। उन्हीं की वजह से प्रति वर्ष मध्य-फरवरी से मध्य-मार्च तक यह आकर्षक गार्डन आम जनता के लिए खोला जाता है। स्थितिमुख्य द्वार प्रतीति राष्ट्रपति भवन का मुख्य प्रवेश द्वार है द्वार संख्या 35, जो कि प्रकाश वीर शास्त्री एवेन्यु (२२ नवंबर २००२ में नॉर्थ एवेन्यु से बदला हुआ नाम) पर स्थित है। इन्होंने अपने संसद सदस्य के कार्यकाल में यहां सेवा की थी, एवं उत्तर प्रदेश से थे। विशेष
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राष्ट्रपति भवन
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