महाराजा पैलेस, मैसूर

महाराजा पैलेस, राजमहल मैसूर के कृष्णराजा वाडियार चतुर्थ का है। यह पैलेस बाद में बनवाया गया। इससे पहले का राजमहल चन्दन की लकड़ियों से बना था। एक दुर्घटना में इस राजमहल की बहुत क्षति हुई जिसके बाद यह दूसरा महल बनवाया गया। पुराने महल को बाद में ठीक किया गया जहाँ अब संग्रहालय है। दूसरा महल पहले से ज्यादा बड़ा और अच्छा है।

महाराजा पैलेस, राजमहल मैसूर के कृष्णराजा वाडियार चतुर्थ का है। यह पैलेस बाद में बनवाया गया। इससे पहले का राजमहल चन्दन की लकड़ियों से बना था। एक दुर्घटना में इस राजमहल की बहुत क्षति हुई जिसके बाद यह दूसरा महल बनवाया गया। पुराने महल को बाद में ठीक किया गया जहाँ अब संग्रहालय है। दूसरा महल पहले से ज्यादा बड़ा और अच्छा है। मैसूर पैलेस दविड़, पूर्वी और रोमन स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। नफासत से घिसे सलेटी पत्थरों से बना यह महल गुलाबी रंग के पत्थरों के गुंबदों से सजा है।

महल में एक बड़ा सा दुर्ग है जिसके गुंबद सोने के पत्तरों से सजे हैं। ये सूरज की रोशनी में खूब जगमगाते हैं। अब हम मैसूर पैलेस के गोम्बे थोट्टी - गुड़िया घर - से गुजरते हैं। यहां 19वीं और आरंभिक 20वीं सदी की गुड़ियों का संग्रह है। इसमें 84 किलो सोने से सजा लकड़ी का हौद भी है जिसे हाथियों पर राजा के बैठने के लिए लगाया जाता था। इसे एक तरह से घोड़े की पीठ पर रखी जाने वाली काठी भी माना जा सकता है।

स्थापत्य

गोम्बे थोट्टी के सामने सात तोपें रखी हुई हैं। इन्हें हर साल दशहरा के आरंभ और समापन के मौके पर दागा जाता है। महल के मध्य में पहुंचने के लिए गजद्वार से होकर गुजरना पड़ता है। वहां कल्याण मंडप अर्थात् विवाह मंडप है। उसकी छत रंगीन शीशे की बनी है और फर्श पर चमकदार पत्थर के टुकड़े लगे हैं। कहा जाता है कि फर्श पर लगे पत्थरों को इंग्लैंड से मंगाया गया था।

दूसरे महलों की तरह यहां भी राजाओं के लिए दीवान-ए-खास और आम लोगों के लिए दीवान-ए-आम है। यहां बहुत से कक्ष हैं जिनमें चित्र और राजसी हथियार रखे गए हैं। राजसी पोशाकें, आभूषण, तुन (महोगनी) की लकड़ी की बारीक नक्काशी वाले बड़े-बड़े दरवाजे और छतों में लगे झाड़-फानूस महल की शोभा में चार चांद लगाते हैं।दशहरा में 200 किलो शुद्ध सोने के बने राजसिंहासन की प्रदर्शनी लगती है। कुछ लोगों का मानना है कि यह पांडवों के जमाने का है। महल की दीवारों पर दशहरा के अवसर पर निकलने वाली झांकियों का सजीव चित्रण किया गया है।

प्रवेशद्वार से भीतर जाते ही मिट्टी के रास्ते पर दाहिनी ओर एक काउंटर है जहाँ कैमरा और सेलफोन जमा करना होता है।काउंटर के पास है सोने के कलश से सजा मन्दिर है। दूसरे छोर पर भी ऐसा ही एक मन्दिर है जो दूर धुँधला सा नज़र आता है। दोनों छोरों पर मन्दिर हैं, जो मिट्टी के रास्ते पर है और विपरीत दिशा में है महल का मुख्य भवन तथा बीच में है उद्यान।

अंदर एक विशाल कक्ष है, जिसके किनारों के गलियारों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर स्तम्भ है। इन स्तम्भों और छत पर बारीक सुनहरी नक्काशी है। दीवारों पर क्रम से चित्र लगे है। हर चित्र पर विवरण लिखा है।कृष्णराजा वाडियार परिवार के चित्र। राजा चतुर्थ के यज्ञोपवीत संस्कार के चित्र। विभिन्न अवसरों पर लिए गए चित्र। राजतिलक के चित्र। सेना के चित्र। राजा द्वारा जनता की फ़रियाद सुनते चित्र। एक चित्र पर हमने देखा प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा का नाम लिखा था। लगभग सभी चित्र रवि वर्मा ने ही तैयार किए।

कक्ष के बीचों-बीच छत नहीं है और ऊपर तक गुंबद है जो रंग-बिरंगे काँचों से बना है। इन रंग-बिरंगे काँचों का चुनाव सूरज और चाँद की रोशनी को महल में ठीक से पहुँचाने के लिए किया गया था।निचले विशाल कक्ष देखने से पहले तल तक सीढियाँ इतनी चौड़ी कि एक साथ बहुत से लोग चढ सकें। पहला तल पूजा का स्थान लगा। यहाँ सभी देवी-देवताओं के चित्र लगे थे। साथ ही महाराजा और महारानी द्वारा यज्ञ और पूजा किए जाने के चित्र लगे थे। बीच का गुंबद यहाँ तक है।

दूसरे तल पर दरबार हाँल है। बीच के बड़े से भाग को चारों ओर से कई सुनहरे स्तम्भ घेरे हैं इस घेरे से बाहर बाएँ और दाएँ गोलाकार स्थान है। शायद एक ओर महारानी और दरबार की अन्य महिलाएँ बैठा करतीं थी और दूसरी ओर से शायद जनता की फ़रियाद सुनी जाती थी क्योंकि यहाँ से बाहरी मैदान नज़र आ रहा था और बाहर जाने के लिए दोनों ओर से सीढियाँ भी है जहाँ अब बाड़ लगा दी गई है।इसी तल पर पिछले भाग में एक छोटे से कक्ष में सोने के तीन सिंहासन है - महाराजा, महारानी और युवराज केलिए।

सजावट

हफ्ते के अंतिम दिनों में, छुट्टियों में और खास तौर पर दशहरा में महल को रोशनी से इस तरह सजाया जाता है, आंखें भले ही चौंधिया जाएं लेकिन नजरें उनसे हटना नहीं चाहतीं। बिजली के 97,000 बल्ब महल को ऐसे जगमगा देते हैं जैसे अंधेरी रात में तारे आसमान को सजा देते हैं।

बाहरी कड़ियां

निर्देशांक:

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Mina Naaz
20 September 2015
Every Sunday, from 7 pm to 7.30 pm, Mysore Palace turns into an illuminated icon of the city. It is really an exhilarating experience to watch the illuminated palace.
Joshua Haftel
21 November 2015
Beautiful building but you're constantly herded through like cattle (actually, I bet you'd be treated better if you were cattle). Floors are clean and lots of fun people to chat with at least.
Ankur Mathur
29 September 2013
Leave your camera at the free camera deposit counter. If they later find it in your bag at the entrance (they xray scan it), you have to walk all the way back to deposit.
Kate
22 June 2023
Architecture and design is a mix of Hindu, European, and Persian. This combo can only be found at the Mysore Palace which makes it unique
Sandeep Pai
27 August 2014
One of the BEST places in the world. Mysore is know for Dasara celebration and the Palace. A must visit place!
Sanjay Kamath
9 August 2019
The iconic Palace in India. Must visit if you're in Mysore and also during the Dasara Festival. Take a official tour guide here. They'll charge Rs. 250 for a group.
नक्शा
0.3km from Sayyaji Rao Road, Chamrajpura, मैसूर, कर्नाटक 570004, भारत दिशा - निर्देश प्राप्त करें
Mon-Sun 10:00 AM–5:30 PM

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