Шаблон:Coor title dms Шаблон:ज्ञानसन्दूक विश्व धरोहर
दिल्ली के किले को लाल - किला भी कहते हैं, क्योंकि यह लाल रंग का है। यह भारत की राजधानी नई दिल्ली से लगी पुरानी दिल्ली शहर में स्थित है। यह युनेस्को विश्व धरोहर स्थल में चयनित है।<ref>Red Fort Complex - UNESCO World Heritage Centre</ref>
लाल किला एवं शाहजहाँनअबाद का शहर, मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा 1639 A.D. में बनवाया गया था। लालकिले का अभिन्यास फिर से किया गया था, जिससे इसे सलीमगढ़ किले के संग एकी कृत किया जा सके। यह किला एवं महल शाहजहाँनाबाद की मध्यकालीन नगरी का महत्वपूर्ण केन्द्र-बिन्दु रहा है। लालकिले की योजना, व्यवस्था एवं सौन्दर्य मुगल सृजनात्मकता का शिरोबिन्दु है, जो कि शाहजहाँ के काल में अपने चरम उतकर्ष पर पहुँची। इस किले के निर्माण के बाद कई विकास कार्य स्वयं शाहजहाँ द्वारा जोडे़ गए। विकास के कई बडे़ पहलू औरंगजे़ब एवं अंतिम मुगल शासकों द्वारा किये गये। सम्पूर्ण विन्यास में कई मूलभूत बदलाव ब्रिटिश काल में 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद किये गये थे। ब्रिटिश काल में यह किला मुख्यतः छावनी रूप में प्रयोग किया गया था। बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी इसके कई महत्वपूर्ण भाग सेना के नियंत्रण में 2003 तक रहे।
लाल किला मुगल बादशाह शाहजहाँ की नई राजधानी, शाहजहाँनाबाद का महल था। यह दिल्ली शहर की सातवीं मुस्लिम नगरी थी। उसने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली बदला, अपने शासन की प्रतिष्ठा बढाने हेतु, साथ ही अपनी नये नये निर्माण कराने की महत्वकाँक्षा को नए मौके देने हेतु भी। इसमें उसकी मुख्य रुचि भी थी।
यह किला भी ताजमहल की भांति ही यमुना नदी के तीर पर स्थित है। वही नदी का जल इस किले को घेरे खाई को भरती थी। इसके पूर्वोत्तरी ओर की दीवार एक पुराने किले से लगी थी, जिसे सलीमगढ का किला भी कहते हैं। सलीमगढ का किला इस्लाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया था। लालकिले का निर्माण 1638 में आरम्भ होकर 1648 में पूर्ण हुआ। पर कुछ मतों के अनुसार इसे लालकोट का एक पुरातन किला एवं नगरी बताते हैं, जिसे शाहजहाँ ने कब्जा़ करके यह किला बनवाया था। लालकोट हिन्दु राजा पृथ्वीराज चौहान की बारहवीं सदी के अन्तिम दौर में राजधानी थी।
11 मार्च 1783 को, सिखों ने लालकिले में प्रवेश कर दीवान-ए-आम पर कब्जा़ कर लिया। नगर को मुगल वजी़रों ने अपने सिख साथियों को समर्पण कर दिया। यह लार्य करोर सिंहिया मिस्ल के सरदार बघेल सिंह धालीवाल के कमान में हुआ।
लालकिला सलीमगढ़ के पूर्वी छोर पर स्थित है। इसको अपना नाम लाल बलुआ पत्थर की प्राचीर एवं दीवार के कारण मिला है। यही इसकी चारदीवारी बनाती है। यह दीवार 1.5 मील (2.5 किमी) लम्बी है, और इसकी ऊँचाई 60 फीट (16मी) नदी किनारे की ओर से, लेकर 110 फीट (33 मी) ऊँची शहर की ओर , तक है। इसके नाप जोख पर ज्ञात हुआ है, कि इसकी योजना एक 82 मी की वर्गाकार ग्रिड (चौखाने) का प्रयोग कर बनाई गई है।
लालकिले की योजना पूर्ण रूपेण की गई थी, और इसके बाद के बदलावों ने भी इसकी योजना के मूलरूप में कोई बदलाव नहीं होने दिया है। 18वीं सदी में कुछ लुटेरों एवं आक्रमणकारियों द्वारा इसके कई भागों को क्षति पहुँचाई गई थी। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद, किले को ब्रिटिश सेना के मुख्यालय के रूप में प्रयोग किया जाने लगा था। इस सेना ने इसके करीब अस्सी प्रतिशत म्ण्डपों तथा उद्यानों को नष्ट कर दिया। .<ref> Dalrymple W., The Last Mughal: Emperor Bahadurshah Zafar and the Fall of Delhi. </ref> इन नष्ट हुए बागों एवं बचे भागों को पुनर्स्थापित करने की योजना सन 1903 में उमैद दानिश द्वारा चलाई गई।
लाल किले में उच्चस्तर की कला एवं विभूषक कार्य दृश्य है। यहाँ की कलाकृतियाँ फारसी, यूरोपीय एवं भारतीय कला संश्लेषण है, जिसका परिणाम विशिष्ट एवं अनुपम शाहजहानी शैली था। यह शैली रंग, अभिव्यंजना एवं रूप में उत्कृष्ट है। लालकिला दिल्ली की एक महत्वपूर्ण इमारत समूह है, जो भारतीय इतिहास एवं उसकी कलाओं को अपने में समेटे हुए है। इसका महत्व समय की सीमाओं से बढ़कर है। यह वास्तुकला सम्बंधी प्रतिभा एवं शक्ति का प्रतीक है। सन 1913में इसे राष्ट्रीय महत्व के स्मारक घोषित होने से पूर्वैसकी उत्तरकालीनता को संरक्षित एवं परिरक्षित करने हेतु प्रयास हुए थे।
इसकी दीवारें, काफी सुचिक्कनता से तराशी गईं हैं। ये दीवारें दो मुख्य द्वारों पर खुली हैं ― दिल्ली गेट एवं लाहौर गेट। लाहौर गेट इसका मुख्य प्रवेशद्वार है। इसके अन्दर एक लम्बा बाजार है, चट्टा चौक, जिसकी दीवारें दुकानों से कतारित हैं। इसके बाद एक बडा़ खुला स्थान है, जहाँ यह लम्बी उत्तर-दक्षिण सड़क को काटती है। यही सड़क पहले किले को सैनिक एवं नागरिक महलों के भागों में बांटती थी। इस सड़क का दक्षिणी छोर दिल्ली गेट पर है।
लाहौर गेट से चट्टा चौक तक आने वाली सड़क से लगे खुले मैदान के पूर्वी ओर नक्कारखाना बना है। यह संगीतज्ञों हेतु बने महल का मुख्य द्वार है।
इस गेट के पार एक और खुला मैदान है, जो कि मुलतः दीवाने-ए-आम का प्रांगण हुआ करता था। दीवान-ए-आम। यह जनसाधारण हेतु बना वृहत प्रांगण था। एक अलंकृत सिंहासन का छज्जा दीवान की पूर्वी दीवार के बीचों बीच बना था। यह बादशाह के लिये बना था, और सुलेमान के राज सिंहासन की नकल ही था।
राजगद्दी के पीछे की ओर शाही निजी कक्ष स्थापित हैं। इस क्षेत्र में, पूर्वी छोर पर ऊँचे चबूतरों पर बने गुम्बददार इमारतों की कतार है, जिनसे यमुना नदी का किनारा दिखाई पड़ता है। ये मण्डप एक छोटी नहर से जुडे़ हैं, जिसे नहर-ए-बहिश्त कहते हैं, जो सभी कक्षों के मध्य से जाती है। किले के पूर्वोत्तर छोर पर बने शाह बुर्ज पर यमुना से पानी चढा़या जाता है, जहाँ से इस नहर को जल आपूर्ति होती है। इस किले का परिरूप कुरान में वर्णित स्वर्ग या जन्नत के अनुसार बना है। यहाँ लिखी एक आयत कहती है,
यदि पृथ्वी पर कहीं जन्नत है, तो वो यहीं है, यहीं है, यहीं है।
महल की योजना मूलरूप से इस्लामी रूप में है, परंतुप्रत्येक मण्डप अपने वास्तु घटकों में हिन्दू वास्तुकला को प्रकट करता है। लालकिले का प्रासाद, शाहजहानी शैली का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करता है।
महल के दो दक्षिणवर्ती प्रासाद महिलाओं हेतु बने हैं, जिन्हें जनाना कहते हैं: मुमताज महल, जो अब संग्रहालय बना हुआ है, एवं रंग महल, जिसमें सुवर्ण मण्डित नक्काशीकृत छतें एवं संगमर्मर सरोवर बने हैं, जिसमें नहर-ए-बहिश्त से जल आता है।
दक्षिण से तीसरा मण्डप है खास महल। इसमें शाही कक्ष बने हैं। इनमें राजसी शयन-कक्ष, प्रार्थना-कक्ष, एक बरामदा और मुसम्मन बुर्ज बने हैं। इस बुर्ज से बादशाह जनता को दर्शन देते थे।
अगला मण्डप है दीवान-ए-खास, जो राजा का मुक्तहस्त से सुसज्जित निजी सभा कक्ष था। यह सचिवीय एवं मंत्रीमण्डल तथा सभासदों से बैठकों के काम आता थाइस म्ण्डप में पीट्रा ड्यूरा से पुष्पीय आकृति से मण्डित स्तंभ बने हैं। इनमें सुवर्ण पर्त भी मढी है, तथा बहुमूल्य रत्न जडे़ हैं। इसकी मूल छत को रोगन की गई काष्ठ निर्मित छत से बदल दिया गया है। इसमें अब रजत पर सुवर्ण मण्डन किया गया है।
अगला मण्डप है, हमाम, जो को राजसी स्नानागार था, एवं तुर्की शैली में बना है। इसमें संगमर्मर में मुगल अलंकरण एवं रंगीन पाषाण भी जडे़ हैं।
हमाम के पश्चिम में मोती मस्जिद बनी है। यह सन् 1659 में , बाद में बनाई गई थी, जो औरंगजे़ब की निजी मस्जिद थी। यह एक छोटी तीन गुम्बद वाली, तराशे हुए श्वेत संगमर्मर से निर्मित है। इसका मुख्य फलक तीन मेहराबों से युक्त है, एवं आंगन में उतरता है।
इसके उत्तर में एक वृहत औपचारिक उद्यान है जिसे हयात बख्श बाग कहते हैं। इसका अर्थ है जीवन दायी उद्यान। यह दो कुल्याओं द्वारा द्विभाजित है। एक मण्डप उत्तर दक्षिण कुल्या के दोनों छोरों पर स्थित हैंएवं एक तीसरा बाद में अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वारा 1842 बनवाया गया था। यह दोनों कुल्याओं के मिलन स्थल के केन्द्र में बना है।
लाल किला दिल्ली शहर का सर्वाधिक प्रख्यात पर्यटन स्थल है, जो लाखॉ पर्यटकों को प्रतिवर्ष आकर्षित करता है। यह किला वह स्थल भी है, जहाँ से भारत के प्रधान मंत्री स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को देश की जनता को सम्बोधित करते हैं। यह दिल्ली का सबसे बडा़ स्मारक भी है।
एक समय था, जब 3000 लोग इस इमारत समूह में रहा करते थे। परंतु 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद]], किले पर ब्रिटिश सेना का कब्जा़ हो गया, एवं कई रिहायशी महल नष्ट कर दिये गये। इसे ब्रिटिश सेना का मुख्यालय भी बनाया गया। इसी संग्राम के एकदम बाद बहादुर शाह जफर पर यहीं मुकदमा भी चला था। यहीं पर नवंबर 1945 में इण्डियन नेशनल आर्मी के तीन अफसरों का कोर्ट मार्शल किया गया था। यह स्वतंत्रता के बाद 1947 में हुआ था। इसके बाद भारतीय सेना ने इस किले का नियंत्रण ले लिया था। बाद में दिसम्बर 2003 में, भारतीय सेना ने इसे भारतीय पर्यटन प्राधिकारियों को सौंप दिया।
इस किले पर दिसम्बर 2000 में लश्कर-ए-तोएबा के आतंकवादियों द्वारा हमला भी हुआ था। इसमें दो सैनिक एवं एक नागरिक मृत्यु को प्राप्त हुए। इसे मीडिया द्वारा काश्मीर में भारत - पाकिस्तान शांति प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास बताया गया था। <ref>Red Fort death sentence is upheld, [1] The BBC, 13 September 2007.</ref><ref>Lashkar raids Red Fort, guns down 3, The Statesman, 22 December 2000.</ref><ref>Visitors gape at Red Fort in disbelief, The Hindu, 25 December 2000.</ref>
1947 में भारत के आजाद होने पर ब्रिटिश सरकार ने यह परिसर भारतीय सेना के हवाले कर दिया था, तब से यहां सेना का कार्यालय बना हुआ था। २२ दिसंबर २००३ को भारतीय सेना ने ५६ साल पुराने अपने कार्यालय को हटाकर लाल किला खाली किया और एक समारोह में पर्यटन विभाग को सौंप दिया। इस समारोह में रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने कहा कि कि सशस्त्र सेनाओं का इतिहास लाल किले से जुड़ा हुआ है, पर अब हमारे इतिहास और विरासत के एक पहलू को दुनिया को दिखाने का समय है।
मुगल शहंशाह शाहजहां ने 1638 में लाल किले के निर्माण के आदेश दिये थे। लगभग इसी समय उसने आगरा में अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद में ताजमहल बनवाना शुरू किया था। लाल किले पर 1739 में फारस के बादशाह नादिर शाह ने हमला किया था और वह अपने साथ यहां से स्वर्ण मयूर सिंहासन ले गया था, जो बाद में ईरानी शहंशाहों का प्रतीक बना।
1857 के गदर के बाद ब्रिटिश सेना ने लाल किले पर नियंत्रण कर लिया।
Шаблон:-Шаблон:आगराШаблон:भारत के दुर्गШаблон:भारत में विश्व धरोहरेंШаблон:मुगल