इत्सुकुशीमा मंदिर (厳島神社 इसकीुकुशिमा-जिंजा), इत्सुकुशीमा द्वीप (जिसे मियाजिमा के रूप में जाना जाता है) पर स्थित, एक शिंतो तीर्थस्थल है, जो अपने "तैरते" टोरि द्वार के लिए जाने जाता हैं। यह जापान में हिरोशिमा प्रांत में हात्सुकाइची शहर में हैं। मंदिर परिसर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध है, और जापानी सरकार ने यहाँ के कई इमारतों और संपत्ति को राष्ट्रीय खजाने के रूप में नामित किया हैं।
वैसे यह मंदिर कई बार नष्ट कर हो चुका हैं, लेकिन पहले मंदिर की स्थापना शायद 6वीं शताब्दी में ही की गई थी। वर्तमान मंदिर 16वीं शताब्दी के मध्य की मानी जाती हैं, लेकिन इसका वास्तु 12वीं श़ताब्दी से पहले का माना जाता हैं। यह वास्तु 1168 में स्थापित किया गया था, जब टेरा नो कियोमोरी द्वारा धनराशि प्रदान की गई थी।
5 सितंबर, 2004 को, टायफून सोंगडा ने मंदिर को गंभीर रूप से क्षति पहुंचाई थी। बोर्डवॉक और छत को आंशिक रूप से नष्ट कर दिया गया था, और मरम्मत के लिए मंदिर अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा था।
यह मंदिर समुद्र और तूफान के शिंतो देवता, और सूरज की देवी अमातेरसु (शाही परिवार के संरक्षक देवी) के भाई, सुसानो-ओ नो मिकोटो की तीन बेटियों को समर्पित हैं। क्योंकि इस पूरे द्वीप को ही पवित्र माना गया हैं, अत: इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए पुर्व में आम लोगों को इस पर पैर भी रखने की अनुमति नहीं थी। तीर्थयात्रियों को यहाँ दर्शन के लिए अनुमति देने के लिए, मंदिर को पानी के ऊपर घाट की तरह बनाया गया था, ताकि यह जमीन से ऊपर तैरता दिखाई दे। लाल प्रवेश द्वार या टौरी को इसी कारण से पानी पर बनाया गया था। आम लोगों को मंदिरों आने से पहले, अपनी नौकाओं को टौरी के अन्दर से ले जाना होता था।
मंदिर की पवित्रता बरकरार रखना इतना महत्वपूर्ण था कि 1878 के बाद से इसके पास किसी भी कि मृत्यु या जन्म नहीं होने दिया जाता हैं। आज तक, गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दिन नज़दिक आने पर मुख्य भूमि पर वापस आना पड़ता हैं, ऐसा ही अधिक बीमार या बहुत बुजुर्ग के साथ भी किया जाता हैं। द्वीप पर शव को दफनानें या जलाने कि पूर्णता मनाहीं हैं।